19 नवंबर को बंद होंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट, 15 नवंबर को गंगोत्री, 16 नवंबर को यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट बंद किए जाएंगे

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19 नवंबर को बंद होंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट

15 नवंबर को गंगोत्री, 16 नवंबर को यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट बंद किए जाएंगे

देहरादून (राजकुमार साथी) चारधामों में शुमार बद्रीनाथ धाम के कपाट 19 नवंबर को दोपहर बाद 3.35 मिनट पर शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे। हर साल दशहरा पर धाम के कपाट बंद करने की तारीख का ऐलान किया जाता है। रविवार की सुबह रावल ईश्वरप्रसाद नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल, देवस्थानम् बोर्ड के अधिकारियों, मंदिर समिति से जुड़े लोगों और भक्तों की उपस्थिति में कपाट बंद करने की तारीख घोषित की गई। बद्रीनाथ के अलावा 15 नवंबर को गंगोत्री, 16 नवंबर को यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट बंद किए जाएंगे।

भुवनचंद्र उनियाल ने बताया कि जब सूर्य वृश्चिक राशि में रहता है, तब इसकी आधी अवधि तक मनुष्यों का बद्रीनाथ धाम में पूजा का अधिकार रहता है। इसके बाद यहां पूजा करने का अधिकार देवताओं को मिलता है। बद्रीनाथ तीर्थ अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। ये धाम करीब 3,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। शीतकाल में यहां का वातावरण बहुत ठंडा हो जाता है, बर्फबारी होती है, इस वजह से बद्रीनाथ मंदिर के कपाट शीत काल में बंद कर दिए जाते हैं। 15 नवंबर को गणेशजी, 16 को शिवजी के आदिकेदारेश्वर, 18 को लक्ष्मी पूजन के बाद 19 को बद्रीनाथ के कपाट शाम 3.35 पर बंद किए जाएंगे। इसके बाद 20 को उद्धवजी की पालकी पांडुकेश्वर जाएगी। 21 को नरसिंह मंदिर में भगवान की गद्दी की स्थापना होगी।

बद्रीनाथजी के कपाट खुलने के बाद यहां नर यानी रावल पूजा करते हैं और बंद होने पर नारदजी पूजा करते हैं। यहां लीलाढुंगी नाम की एक जगह है। यहां नारदजी का मंदिर है। कपाट बंद होने के बाद बद्रीनाथ में पूजा का प्रभार नारदमुनि का रहता है। ईश्वरप्रदास नंबूदरी 2014 से बद्रीनाथ के रावल हैं। बद्रीनाथ कपाट बंद होने के बाद वे अपने गांव राघवपुरम पहुंच जाते हैं। ये गांव केरल के पास स्थित है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा तय की गई व्यवस्था के अनुसार केरल स्थित राघवपुरम गांव में नंबूदरी संप्रदाय के लोगों में से ही रावल नियुक्त किए जाते हैं। मान्यता है कि पुराने समय में भगवान विष्णुजी ने इसी क्षेत्र में तपस्या की थी। उस समय महालक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर विष्णुजी को छाया प्रदान की थी। लक्ष्मीजी के इस सर्मपण से भगवान प्रसन्न हुए। विष्णुजी ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था।

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