हाथरस गैंगरेप : पीडि़त परिवार के खिलाफ एकजुट हुए ब्राहमण और ठाकुर
12 गांवों की पंचायत में लिया फैसला, आरोपियों को बचाने को लगाएंगे एड़ी–चोटी का जोर
अमर ज्वाला ब्यूरो
लुधियाना। हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश शासन और पुलिस–प्रशासन की नालायकी की वजह से समाज जातीय तौर पर बंटने लग गया है। जिनके साथ अन्याय हुआ, वे तो केवल आरोपियों को सिर्फ अपराधी मानकर उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं, मगर जो अपराध करने वाले आरोपी हैं, उनके समर्थन में हाथरस जिले के ठाकुर व ब्राहमण एकजुट होने लगे हैं। यह स्थिति काफी दुखदायक है। क्योंकि भारतीय संविधान के अनुसार केवल अपराधी का अपराध देखा जाता है, उसकी जाति, धर्म या वर्ग नहीं। लेकिन हाथरस में जो हो रहा है, वह संविधान के एकदम विपरीत और मनुस्मृति की याद दिलाने वाला है। क्योंकि यहां पीडि़त परिवार को न्याय मांगने का अधिकार भी सवर्ण जाति के लोग नहीं देना चाहते। यही कारण है कि गैंगरेप व हत्या के चारों आरोपियों को बचाने के लिए 12 गांवों के ठाकुर व ब्राहमणों की पंचायत में यह फैसला लिया गया है कि वे आरोपियों को बचाने के लिए एड़ी–चोटी का जोर लगा देंगे। इस पंचायत के बाद भी उत्तर प्रदेश शासन की ओर से कोई संतोषजनक कार्रवाई नहीं करना इस बात का संकेत है कि वहां पर जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। यानि जो जातीय, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तौर पर मजबूत है, वह किसी भी गरीब के साथ कोई भी अन्याय करके खुद को निर्दोष साबित करने का प्रयास कर सकता है।
बूलगढ़ी से सटे गांव बघना में हुई इस पंचायत के बाद पीडि़त परिवार में दहशत का माहौल है। उन्हें आरोपियों के परिवारों की ओर से दी जा रही धमकियां सच होने का डर सताने लगा है।
बूलगढ़ी गांव के एक ठाकुर युवक ने बताया कि पंचायत के बाद से ही माहौल बदल गया है और अब लोग पीडि़त परिवार के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। इस गांव में दलितों के गिने–चुने घर हैं। ठाकुरों और ब्राह्मणों के एक साथ आने के बाद उनके लिए हालात अब और भी मुश्किल हो जाएंगे। उसने बताया कि गांव के लोग अब पुलिस के साथ हैं और चाहते हैं कि मीडिया गांव में ना आए। क्योंकि ठाकुर समाज को लग रहा है कि मीडिया ने सिर्फ पीडि़त परिवार का पक्ष दिखाया है और आरोपियों के परिजनों का पक्ष नहीं जाना।
इस माहौल का एक दूसरा पहलू भी है। वो यह है कि पीडि़त परिवार के बाहर पुलिस का इस कदर पहरा है कि अपने घर में ही बंदी बनकर रह गए हैं। उन पर दवाब बनाने के लिए पुलिस किसी को भी उनसे बात नहीं करने दे रही। इसी कारण पीडि़त पक्ष पुलिस पर भरोसा नहीं कर पा रहा। इस मामले में शासन की ओर से कई पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड करने के कारण पुलिस पीडि़त पक्ष पर ही अपना गुस्सा निकालती दिखती है।
तो क्या ठाकुरों को दवाब में हुए सीबीआई जांच के आदेश
पंचायत के दौरान ठाकुर व ब्राहमण समाज के लोगों का कहना था कि जब मेडिकल रिपोर्ट में गैंगरेप की पुष्टि ही नहीं हुई है, तो उनके बच्चों को किसी आधार पर आरोपी बनाकर जेल में ठूंसा गया है। इस मामले की अगर सीबीआई जांच हो जाए और दलित परिवार का नार्को टेस्ट हो जाए तो उनके बच्चे निर्दोष निकलेंगे। इसके बाद ही सरकार ने एसआईटी से जांच लेकर सीबीआई को सौंपने का ऐलान कर दिया।