बीमारी की जानकारी छुपाई तो खारिज हो सकता है जीवन बीमा का क्लेम
दिल्ली। लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के एक महीने बाद ही पॉलिसी धारक की मौत के मामले में किए गए क्लेम को खारिज करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर पॉलिसी लेते समय बीमारी संबंधी जानकारी छुपाई गई को क्लेम खारिज हो सकता है। जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि कोई व्यक्ति जीवन बीमा लेना चाहता है तो उसका यह दायित्व है कि वह सभी तथ्यों का खुलासा करे, ताकि बीमा कंपनी सभी जोखिमों पर विचार कर सके। कोर्ट ने कहा कि बीमा के लिए भरे जाने वाले फार्म में किसी पुरानी बीमारी के बारे में बताने का कॉलम होता है। इससे बीमा कंपनी उस व्यक्ति के बारे में वास्तविक जोखिम का अंदाजा लगाती है। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) का एक फैसला खारिज कर दिया।
एनसीडीआरसी ने इस साल मार्च में बीमा कंपनी को मृतक की मां को डेथ क्लेम की पूरी रकम ब्याज सहित देने का आदेश सुनाया था। बीमा कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि कार्यवाही लंबित रहने के दौरान उनकी ओर से क्लेम की पूरी राशि का भुगतान कर दिया गया है। जजों ने पाया कि मृतक की मां की उम्र 70 साल है और वह मृतक पर ही आश्रित थी। इसलिए उन्होंने आदेश दिया कि बीमा कंपनी इस रकम की रिकवरी नहीं करेगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच के दौरान मेडिकल रिपोर्ट में यह साफ पाया गया कि पॉलिसी धारक पहले से ही हेपाटाइटिस सी नामक गंभीर बीमारी से जूझ रहा था। इस बारे में बीमा कंपनी को नहीं बताया गया था। इस तथ्य को छुपाने के आधार पर बीमा कंपनी ने मई 2015 में क्लेम रद्द कर दिया था। इसके बाद नॉमिनी ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम में शिकायत दी थी। इस पर फोरम ने बीमा कंपनी को ब्याज के साथ बीमा राशि चुकाने का आदेश दिया था।