डाइबिटीज, हाई बीपी, स्मोकिंग और शराब से बढ़ता है स्ट्रोक का खतरा

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डाइबिटीज, हाई बीपी, स्मोकिंग और शराब से बढ़ता है स्ट्रोक का खतरा

स्ट्रोक को लेकर फोर्टिस अस्पताल में आयोजित हुआ जागरूकता कार्यक्रम

लुधियाना। स्ट्रोक (ब्रेन अटैक) जागरुकता और स्ट्रोक का इलाज शुरू होने से पहले के समय (गोल्डन ऑवर्स) का महत्व बताने के लिए फोर्टिस अस्पताल लुधियाना में अवेयरनेस प्रोग्राम कराया गया। जिसमें सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आलोक जैन ने स्ट्रोक के कारणों और इसे रोकने के उपाय पर चर्चा की। डॉ. जैन ने कहा कि डाइबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन, हार्ट डिजीज, मोटापा, स्मोकिंग, शराब के बढ़ते इस्तेमाल और बदलते लाइफ स्टाइल ने स्ट्रोक का खतरा बढ़ा दिया है। उन्होंने बताया कि महिलाओं में स्ट्रोक का खतरा अधिक होता है। जिन लोगों में पहले स्ट्रोक हो चुका है या जिनकी इसे लेकर फैमिली हिस्ट्री है, ऐसे लोगों को भी स्ट्रोक होने का खतरा ज्यादा रहता है। उन्होंने कहा कि स्ट्रोक या ब्रेन अटैक होने और इसका इलाज शुरू होने के बीच का समय गोल्डन ऑवर्स कहलाता है। क्योंकि इस समय के दौरान अगर कुछ बातों का ध्यान रखकर मरीज की मदद की जाए तो अपाहिज होने से बच सकता है।

डॉ. जैन के मुताबिक स्ट्रोक शुरू होने के बाद साढ़े चार घंटे के भीतर क्लॉट तोडऩे वाला इंजेक्शन (थ्रोम्बोलिसिस) दे दिया जाए तो मरीज से अपाहिज होने का खतरा टल जाता है और वह तेजी से रिकवर कर सकता है। अगर इलाज में देरी हो जाए तो उक्त व्यक्ति रोगी अपने परिवार पर बोझ बनकर रह जाता है। उसके इलाज का आर्थिक बोझ भी उसके परिवार को झेलना पड़ता है।  हालांकि, एक्यूट इस्केमिक स्ट्रोक के ज्यादातर मरीज समय रहते अच्छे अस्पताल में नहीं पहुंच पाते, जगहां इन-हाउस सीटी स्कैन और एक्यूट स्ट्रोक की देखभाल की सुविधा उपलब्ध हो। जिसके चलते वे ताउम्र विकलांग भी हो सकते हैं। न्यूरो सर्जरी विभाग के एडिश्नल डायरेक्टर डॉ. विष्णु गुप्ता ने स्ट्रोक मैनेजमेंट में हुई प्रोग्रेस की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एंडोवस्कुलर थेरेपी (स्टेंट डिवाइस के साथ क्लॉट रिट्रीवल) भी काफी विकसित हो चुकी है। इस थैरेपी से थ्रोम्बोलिसिस के इलाज पीरियड को बढ़ाया जा सकता है। न्यूरोसाइंस टीम ने स्ट्रोक के बाद मंरीज की देखभाल और उसके पुनर्वास के बारे में भी चर्चा की।

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