जब लिवर फेल हो जाए तो ट्रांसप्लांट बनता है नया जीवन- डॉ. अभिदीप चौधरी

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लुधियाना, 23 अप्रैल (राजकुमार साथी)। बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नई दिल्ली के लिवर ट्रांसप्लांट और बिलियरी साइंसेज विभाग के वाइस चेयरमैन एवं एचओडी डॉ. अभिदीप चौधरी ने बताया कि हर साल हजारों मरीज एंड-स्टेज लिवर डिजीज यानी अंतिम चरण के लिवर रोग से ग्रसित होते हैं, जिनका इलाज दवाइयों या आहार के जरिए संभव नहीं होता। ऐसे मरीजों के लिए लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प बचता है, जो उन्हें जीवन का दूसरा अवसर देता है। हालांकि, ऑर्गन ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया पहली बार में डरावनी लग सकती है, लेकिन यदि मरीज और उनके परिजन इस प्रक्रिया को समझ लें तो यह अनुभव कम तनावपूर्ण हो सकता है। लिवर ट्रांसप्लांट एक शल्य चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें रोगग्रस्त लिवर को निकालकर एक स्वस्थ लिवर से प्रतिस्थापित किया जाता है। यह स्वस्थ लिवर जीवित या मृत दाता से प्राप्त हो सकता है। लिवर शरीर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है, जो डिटॉक्सीफिकेशन, प्रोटीन सिंथेसिस और पाचन जैसी क्रियाओं में अहम भूमिका निभाता है। जब लिवर ठीक से कार्य करना बंद कर देता है, तो इसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है। लिवर ट्रांसप्लांट इस मायने में भी खास है क्योंकि लिवर स्वयं को पुनः विकसित कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि जीवित दाता के लिवर का एक हिस्सा भी पर्याप्त होता है, जो धीरे-धीरे बढ़कर पूर्ण आकार में कार्य करने लगता है। इससे मरीज को मृत दाता की प्रतीक्षा किए बिना नई जिंदगी मिल सकती है। डॉ. अभिदीप ने बताया कि हर लिवर रोगी को लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह केवल उन मरीजों के लिए जरूरी होता है जिनका लिवर पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है। इसके प्रमुख कारणों में हेपेटाइटिस बी या सी, अत्यधिक शराब सेवन, फैटी लिवर के कारण सिरोसिस, प्रारंभिक अवस्था का लिवर कैंसर, जेनेटिक रोग जैसे विल्सन डिज़ीज़ और हीमोक्रोमैटोसिस, तथा शिशुओं में पाई जाने वाली बाइलरी एट्रेशिया जैसी स्थितियाँ शामिल हैं। डॉक्टर यह तय करने के लिए MELD स्कोर का उपयोग करते हैं, जो यह दर्शाता है कि लिवर की खराबी कितनी गंभीर है और ट्रांसप्लांट की कितनी जल्दी आवश्यकता है। लिवर ट्रांसप्लांट दो प्रकार के डोनर से किया जा सकता है, मृत दाता और जीवित दाता। मृत दाता ट्रांसप्लांट में संपूर्ण लिवर उस व्यक्ति से प्राप्त होता है जिसकी मृत्यु हो चुकी हो और उसके परिवार ने अंगदान की अनुमति दी हो। वहीं, जीवित दाता ट्रांसप्लांट में कोई स्वस्थ व्यक्ति, आमतौर पर परिवार का सदस्य, अपने लिवर का एक हिस्सा दान करता है, जो कुछ हफ्तों में दोनों – दाता और प्राप्तकर्ता – में पुनः सामान्य आकार में विकसित हो जाता है। जीवित दाता ट्रांसप्लांट के कई लाभ हैं, जैसे कम प्रतीक्षा समय, प्रक्रिया की बेहतर योजना और बेहतर परिणाम मिलने की संभावना। डॉ. अभिदीप ने आगे बताया कि च्च्लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी आमतौर पर ६ से १२ घंटे तक चलती है और इसकी अवधि मामले की जटिलता पर निर्भर करती है। सर्जरी के बाद मरीज को पहले आईसीयू में रखा जाता है, फिर सामान्य वार्ड में स्थानांतरित किया जाता है। रिकवरी के दौरान मरीज को १ से २ सप्ताह तक अस्पताल में रहना पड़ता है, नियमित रक्त परीक्षण और स्कैन के माध्यम से लिवर की कार्यक्षमता की निगरानी की जाती है, और अंग अस्वीकार न हो इसके लिए आजीवन इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं लेनी पड़ती हैं। मरीज आमतौर पर ३ से ६ महीनों में धीरे-धीरे सामान्य जीवन में लौट सकते हैं। सर्जरी के बाद की देखभाल बेहद जरूरी होती है, क्योंकि सही दवाएं और नियमित फॉलो-अप से मरीज स्वस्थ और सक्रिय जीवन जी सकते हैं। हर सर्जरी की तरह लिवर ट्रांसप्लांट में भी कुछ जोखिम होते हैं, जैसे संक्रमण, बाइल डक्ट की जटिलताएं और अंग अस्वीकृति। फिर भी, आधुनिक शल्य पद्धतियों और प्रभावी दवाओं की मदद से सफलताओं की दर काफी बेहतर हुई है। लिवर ट्रांसप्लांट केवल एक चिकित्सा प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन को दोबारा पाने का अवसर है। यह उन मरीजों के लिए उम्मीद की किरण है जो लिवर रोग के गंभीर चरणों से जूझ रहे हैं। यदि आपको या आपके किसी प्रियजन को लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है, तो ट्रांसप्लांट सेंटर से संपर्क कर पूरी जानकारी लें और बेहतर जीवन की ओर पहला कदम बढ़ाएं।

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