घर के भीतर कही बात पर नहीं लगता एससी–एसटी एक्ट
दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को लेकर घर के भीतर कही कोई अपमानजनक बात, जिसका कोई गवाह न हो, वह अपराध नहीं हो सकती। इसी के साथ शीर्ष न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर लगा अनुसूचित जाति–जनजाति अधिनियम का मुकदमा रद करने का आदेश दिया है। उत्तराखंड के इस मामले में एक औरत ने हितेश वर्मा पर घर के भीतर अपमानजनक बातें कहने का आरोप लगाया था। इसी के आधार पर पुलिस ने आदमी के खिलाफ एससी–एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति–जनजाति अधिनियम के तहत सभी तरह के अपमान और धमकियां नहीं आतीं। अधिनियम के तहत केवल वे मामले आते हैं, जिनके चलते पीडि़त व्यक्ति समाज के सामने अपमान या उत्पीडऩ झेलता है। अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने के लिए अन्य लोगों की मौजूदगी में अपराध होना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि तथ्यों के दृष्टिगत अनुसूचित जाति–जनजाति (उत्पीडऩ रोकथाम) अधिनियम के सेक्शन 3 (1) (आर) के अनुसार अपराध नहीं हुआ है। इसलिए मामले में दाखिल आरोप पत्र को रद किया जाता है।